सनातन डर - डर एक सिलसिला

डर की क्या परिभाषा है , ये तो मन की सतत गाथा है।
हम निर्बल असहाय हो जाते है , जब भी अपरिचित को पाते है।
 
अंधेरा हो वो चाहे फिर , या हो कोई जिनावर ,
फिर चाहे हो वो परिस्थिति कोई , या फिर हो  कोरोना। 
डरते है जब हम सम्मुख आते है ,
अंजान अपने, अपनों के,परायो के, स्थितियों के, अस्वीकृति के। 

डर की वजह का क्या हम अन्वेषण कर पाते है ?
नारात्मक सोच का निष्कर्ष है क्या डर?
आकांक्षाओं का उत्तर है क्या डर?
अस्थिरता का नतीजा है क्या  डर ?
आसक्ति का प्रतिवचन  है क्या डर?

डर एक एहसास है, दो पहलू जिसके पास है। 
डर एक संहारक भी है , डर एक पालक भी। 
डर के साथ रह कर ,अपना लो इसे अगर,
उम्मीदों का पुल बनाकर , दिखाता ये आगे जाने का रास्ता। 

Comments

Popular posts from this blog

Princess- A saga of Euphoria

Book Review - Nikola Tesla , Imagination and the man that invented the 20TH century by Sean Patrick

The mind tricks they play!