इश्क का घरौंदा|
इश्क करना इतना आसान भी नहीं,
बह उठती है दर्द की सरिता चित्त मे कहीं।
ज़ुल्म तो देखिए इस प्रपंच का,
आंखों का पानी भी यहीं, होठों की मुस्कान भी यहीं।
बेचैनी दी इस इश्क ने, नींद का सुकून भी यहीं ।
क्या बताये बात इस अनूठे की,
अनभिज्ञता और बुद्धिमत्ता का हमारी, अलंकार भी यहीं।
लगा था कि पाहुना है, इसका पर घरौंदा अब यहीं।
नजर की इसकी अब भेंट हम भी।
Comments
Post a Comment
Thank you