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Showing posts from March, 2020

कहानी एक मजदूर की

आया था शहर ये सोचकर,  दे सकूंगा अपने बच्चो को दो वक़्त की रोटी मेहनत कर। रूखी सूखी जुगाड कर चला रहा था काम अपना, अब भटक रहा हूं दर बदर। बहुत दूर है गांव मेरा, पहुंचूं अब वहां क्या कर। चल तो पड़ा हूं परिवार लेकर, खाता हूं ठोकर पर मै दिन भर। छोटे छोटे पांव मेरे बच्चो के, दिन भर चल के थक जाते है। कंधे पर लेने लगु, हम ठीक है कह कर ना जाने इतनी हिम्मत कहां से लाते है। सुना है विदेश से एक वायरस आया, जिसने है हमारा भविष्य खाया। काम ख़त्म हो गया,  इससे पहले कुछ समझ आया। शहर का रहा , ना गांव का रहा, मालिक का रहा , ना सरकार का रहा। बच्चो को मेरे अब रोटी कैसे खिलाऊं, मैं अब घर कैसे जाऊं? वायरस का पता नहीं, पर भूखमरी मार देगी, अपने ही देश में ये बेकद्री मार देगी। दिया है वोट उम्मीदों से, सुन लो ए सरकार। मैं वही मजदूर हूं, जिसके घर कल तुम वादे ले कर आए थे, भूला दूंगा सब गिले शिकवे, आज बस दे दो रोटी, जाने दो घर।

Corona effect!

Whenever in my hometown, I usually spend my evenings on terrace.  I am qualified to say that I live in a pretty busy area. Because it is near to one  of the premier coaching institutes of Kota. There are countless P.Gs. and hostels, several marts and hotels , many grocery stores and stationary shops, numerous eateries and restaurants and what not. Students, teachers, businessmen, busy and running, all thriving for more. Today was a different evening because of pertaining lock down in the country in lieu of the spread of COVID-19. Many people were on their terrace spending their evenings , the roads and parks were empty, life seemed slow paced around my locality.The sky was clearer(can't ignore the role of rain two days ago though!). I could see a little more stars(AW!). I was kind of relaxed and thrilled to see that. Relaxed because people are following home quarantine religiously in my neighborhood and I am proud of it. Thrilled because I suddenly realized ...